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[उपवन]

(जयमाला और देवसेना)

जयमाला-- तू उदास है कि प्रसन्न, कुछ समझ में नहीं आता! जब तू गाती है तब तेरे भीतर की रागिनी रोती है, और जब हँसती है तब जैसे विषाद की प्रस्तावना होती है!

१-सखी--सम्राट युद्ध-यात्रा में गये हैं और......

२-सखी--तो क्या?

देवसेना--तुम सब भी भाभी के साथ मिल गई हो। क्यों भाभी! गाऊँ वह गीत?

जयमाला-- मेरी प्यारी! तू गाती है। अहा! बड़ी-बड़ी आँखें तो बरसाती ताल-सी लहरा रही हैं। तू दुखी होती है। ले, मैं जाती हूँ। अरी! तुम सब इसे हँसाओ। (जाती है)

देवसेना--क्या महारथी हारकर भगे? अब तुम सच क्षुद्र सैनिकों की पारी है? अच्छा तो आओ।

१—सखी-- नहीं, राजकुमारी! मैं पूछती हूँ कि सम्राट् ने तुमसे कभी प्रार्थना की थी?

२-सखी-–हाँ, तभी तो प्रेम का सुख है!

३—सखी--तो क्या मेरी राजकुमारी स्वयं प्रार्थिनी होंगी?

देवसेना-प्रार्थना किसने की है, यह रहस्य की बात है। क्यों? कहूँँ? प्रार्थना हुई है मालव की ओर से; लोग कहेंगे

कि मालव देकर देवसेना का व्याह किया जा रहा है।

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