यह पृष्ठ प्रमाणित है।
स्कंदगुप्त
सुनते ही नहीं! मैं सबको समझाती हूँ, विवाद मिटाती हूँ। सखी! फिर भी मैं इसी झगड़ालू कुटुम्ब में गृहस्थी सम्हालकर,
स्वस्थ होकर, बैठती हूँ।
३-सखी-आश्चर्य! राजकुमारी! तुम्हारे हृदय में एक बरसाती नदी वेग से भरी है!
देवसेना-कूलों में उफनकर बहनेवाली नदी, तुमुल तरङ्ग; प्रचंड पवन और भयानक वर्षा! परन्तु उसमें भी नाव चलानी ही होगी।
१-- सखी--
(गान)
माझी! साहस है खे लोगे
जर्जर तरी भरी पथिकों से---
झड़ में क्या खोलोगे
अलस नील घन की छाया में---
जलजालों की छल-माया में---
अपना बल तोलोगे
अनजाने तट की मदमाती---
लहरें, क्षितिज चूमती आतीं
ये झटके झेलोगे? माझी---
(भीमवर्म्मा का प्रवेश)
भीम०--बहिन! शक-मंडल से विजय का समाचार आया है!
देवसेना--भगवान की दया है।
१०४