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तृतीय अंक
 


भीम॰--परन्तु, महाराजपुत्र गोविन्दगुप्त वीरगति को प्राप्त हुए, यह बड़ा••••••••!

देवसेना--वे धन्य हैं!

भीम०---वीर-शय्या पर सोते-सोते उन्होंने अनुरोध किया कि महाराज बन्धुवर्म्मा गुप्तसाम्राज्य के महाबलाधिकृत बनाये जायँ, इसलिये अभी वे स्कंधावार में ठहरेंगे। उनका आना अभी नहीं हो सकता है और भी कुछ सुना देवसेना?

देवसेना--क्या?

भीम०--सम्राट् ने तुम्हें बचाने के पुरस्कार-स्वरूप मातृगुप्त को काश्मीर का शासक बना दिया है। गान्धारवंशी राजा अब वहाँ नहीं है। काश्मीर अब साम्राज्य के अन्तर्गत हो गया है।

देवसेना--सम्राट् की महानुभावता है। भाई! मेरे प्राणों का इतना मूल्य?

भीम०--आर्य्य-साम्राज्य का उद्धार हुआ है। बहिन! सिधु के प्रदेश से म्लेच्छ-राज ध्वंस हो गया है। प्रवीर सम्राट् स्कंदगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की है। गौ, ब्राह्मण और देवताओं की ओर कोई भी आततायी आँख उठाकर नहीं देखता। लौहित्य से सिधु तक, हिमालय की कन्दराओ में भी, स्वच्छन्दतापूर्वक सामगान होने लगा। धन्य हैं हम लोग जो इस दृश्य को देखने के लिये जीवित है!

देवसेना--मङ्गलमय भगवान सब मङ्गल करेंगे। भाई, साहस चाहिये, कोई वस्तु असम्भव नहीं।

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