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तृतीय अंक
 

देवसेना-- आज कौन-सी तिथि है? एकादशी तो नहीं है?

मुद्गल-- हाँ, यजमान के घर एकादशी और मेरे पारण की द्वादशी; क्योंकि ठीक मध्याह्न में एकादशी के ऊपर द्वादशी चढ़ बैठती है, उसका गला दबा देती है; पेट पचकने लगता है

देवसेना-- अच्छा, आज तुम्हारा निमंत्रण है--- तुम्हारी स्त्री के साथ।

मुद्गल-- जो है सो देवता प्रसन्न हों, आपका कल्याण हो! फिर शीघ्रता होनी चाहिये। पुण्यकाल बीत न जाय••••• चलिये। मैं उसे बुला लेता हूँ। (जाता है)

[सबका प्रस्थान]

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