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तृतीय अंक
 

(चर का प्रवेश)

स्कंद॰-- गान्धार-युद्ध का क्या समाचार है?

चर-- विजय। उस रणक्षेत्र में हूण नहीं रह गये। परंतु सम्राट्! बंधुवर्म्मा नहीं हैं!

स्कंद०-- आह बंधु! तुम चले गये? धन्य हो वीर-हृदय!

(शोक-मुद्रा से बैठ जाता है)

चक्र०-- इसका समय नहीं है सम्राट्! उठिये, सेना आ रही है; इस समय यह समाचार नहीं प्रचारित करना है।

स्कंद॰-- (उठते हुए) ठीक कहा।

(भटार्क के साथ सेना का प्रवेश)

स्कंद०-- देखो, कुभा के उस बंध से सावधान रहना! आक्रमण में यदि असफलता हो, और शत्रु की दूसरी सेना कुभा को पार करना चाहे, तो उसे काट देना। देखो भटार्क! तुम्हारे विश्वास का यही प्रमाण है।

भटार्क-- जैसी आपकी आज्ञा।

(कुछ सैनिकों के साथ जाता है)

स्कंद०-- चक्र! दुर्ग-रक्षक सैनिकों को लेकर तुम प्रतीक्षा करना। हम इसी छोटी-सी सेना से आक्रमण करेंगे। तुम सावधान!

(नेपथ्य से रणवाद्य)

देखो--वह हूण आ रहे हैं! उन्हें वहीं रोकना होगा। तुम दुर्ग में जाओ।

चक्र०-- जैसी आज्ञा। (जाता है)

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