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[भटार्क का शिविर]

(नर्त्तकी गाती है)



भाव-निधि में लहरियाँ उठतीं तभी
भूलकर भी जब स्मरण होता कभी
मधुर मुरली फेंक दी तुमने भला
नींद मुझको आ चली थी बस अभी
सब रगों में फिर रही हैं बिजलियाँ
नील नीरद! क्या न बरसोगे कभी
एक झोंका और मलयानिल अहा।
क्षुद्र कलिका है खिली जाती अभी
कौन मर-मरकर जियेगा इस तरह
यह समस्या हल न होगी क्या कभी



( कमला और देवकी का प्रवेश )

देवकी-भटार्क! कहाँ है मेरा सर्वस्व? बता दे मेरे आनन्द का उत्सव, मेरी आशा का सहारा, कहाँ है?

भटार्क-- कौन!

कमला-- कृतघ्न! नहीं देखता है, यह वही देवी हैं-- जिन्होंने तेरे नारकीय अपराध को क्षमा किया था-- जिन्होने तुझ-से घिनौने कीड़े को भी मरने से बचाया था। वही, वही, देव-प्रतिमा महादेवी देवकी।

भटार्क-- (पहचानकर) कौन? मेरी माँ!

कमला-- तू कह सकता है। परन्तु मुझे तुझको पुत्र कहने में संकोच होता है, लज्जा से गड़ी जा रही हूँ! जिस जननी की

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