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चतुर्थ अंक
 


संतान--जिसका अभागा पुत्र-ऐसा देशद्रोही हो, उसको क्या मुँह दिखाना चाहिये? आह भटार्क!

भटार्क--राजमाता और मेरी माता!

देवकी--बता भटार्क! वह आर्य्यावर्त्त का रत्न कहाँ है? देश को बिना दाम का सेवक, वह जन-साधारण के हृदय का स्वामी, कहाँ है? उससे शत्रुता करते हुए तुझे•••••

कमला--बोल दे भटार्क!

भटार्क--क्या कहूँ, कुभा की क्षुब्ध लहरों से पूछो, हिमवान की गल जानेवाले बर्फों से पूछो कि वह कहाँ है। मैं नहीं•••••

देवकी--आह! गया मेरा स्कंद!! मेरा प्राण!!!

(गिरती है, मृत्यु!)

कमला--(उसे सम्हालती हुई) देख पिशाच! एक बार अपनी विजय पर प्रसन्नता से खिलखिला ले। नीच! पुण्य-प्रतिमा को, स्त्रियों की गरिमा को, धूल में लोटता हुआ देखकर, एक बार हृदय खोलकर हँस ले। हा देवी!

भटार्क--क्या! (भयभीत होकर देखता है)

कमला--इस यंत्रणा और प्रतारणा से भरे हुए संसार की पिशाच भूमि को छोड़कर अक्षय लोक को गई, और तू जीता रहा–-सुखी घरों में आग लगाने, हाहाकार मचाने और देश को अनाथ बनाकर उसकी दुर्दशा कराने के लिये--नरक के कीड़े! तू जीता रहा!!

भटार्क–- मा, अधिक न कहो। साम्राज्य के विरुद्ध कोई

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