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स्कंदगुप्त
 


अपराध करने का मेरा उद्देश्य नहीं था; केवल पुरगुप्त को सिंहासन पर बिठाने की प्रतिज्ञा से प्रेरित होकर मैंने यह किया। स्कंदगुप्त न सही, पुरगुप्त सम्राट होगा।

कमला-- अरे मूर्ख! अपनी तुच्छ बुद्धि को सत्य मानकर, उसके दर्प में भूलकर, मनुष्य कितना बड़ा अपराध कर सकता है! पामर! तू सम्राटों का नियामक बन गया? मैंने भूल की; सूतिका-गृह में ही तेरा गला घोंटकर क्यों न मार डाला! आत्महत्या के अतिरिक्त अब और कोई प्रायश्चित्त नहीं।

भटार्क–- मा, क्षमा करो। आज से मैंने शस्त्र-त्याग किया। मैं इस संघर्ष से अलग हूँ, अब अपनी दुर्बुद्धि से तुम्हें कष्ट न पहुँचाऊँगा (तलवार डाल देता है)

कमला-- तूने विलम्व किया भटार्क! महादेवी......एक दिन जिसके नाम पर गुप्त-साम्राज्य नतमस्तक होता था, आज उसकी अन्त्येष्टि-क्रिया के लिये कोई उपाय नहीं!......हा दुर्दैव!

भटार्क-- (ताली बजाता हैं, सैनिक आते हैं) महादेवी की अन्त्येष्टि-क्रिया राजसम्मान से होनी चाहिये। चलो, शीघ्रता करो।

(देवकी के शव को एक ऊँचे स्थान पर दोनो मिलकर रखते हैं)

कमला-- भटार्क ! इस पुण्यचरण के स्पर्श से, संभव है, तेरा पाप छूट जाय।

भटार्क और कमला पर तीव्र आलोक।

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