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स्कंदगुप्त
 


करुणा की सीमा है? जाइये, घर लौट जाइये। (ब्राह्मण से।) आओ रक्त-पिपासु धार्म्मिक! लो, मेरा उपहार देकर अपने देवता को संतुष्ट करो! (सिर झुका लेता है)

ब्राह्मण-- (तलवार फेंक्कर) धन्य हो महाश्रमण! मै नहीं जानता था कि तुम्हारे-ऐसे धार्मिक भी इसी संघ में है! मैं बलि नहीं करूँगा।

[जनता में जयजयकार; सत्ब धीरे-धीरे जाते हैं]


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