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स्कंदगुप्त
 


से आकर एक हाथ से हूण की गर्दन, दूसरे हाथ से देवसेना की छुरी पकड़ता है।)

हूण-- क्षमा हो!

पर्णदत्त-- अत्याचारी! जा, तुझे छोड़ देता हूँ। आ बेटी, हम लोग चलें महादेवी की समाधि पर।

कमला-- कहाँ, वहीं--कनिष्क के स्तूप के पास?

देवसेना-- हाँ, कौन--कमला देवी?

कमला-- वही अभागिनी।

देवसेना-- अच्छा, जाती हूँ; फिर मिलूँगी।

(पर्णदत्त के साथ देवसेना का प्रस्थान)

(स्कंद का प्रवेश)

स्कंद०-- कोई नहीं मिला। कहाँ से वह पुकार आई थी? मेरा हृदय व्याकुल हो उठा है। सच्चे मित्र बंधुवर्म्मा की धरोहर! ओह!

कमला-- वह सुरक्षित है, घबराइये नहीं। कनिष्क के स्तूप के पास आपकी माता की समाधि है, वहीं पर पहुँचा दी गई है।

स्कंद-- मा! मेरो जननी! तू भी न रही! हा!

(मूर्छित होता है; कमला उसे कुटी में उठा ले जाती है।)

[पटाक्षेप]


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