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स्कंदगुप्त
 

(स्तूप का एक भाग--नागरिकों का आना। उन्हीं में वेश बदले हुए मातृगुप्त, भीमवर्म्मा, चक्रपालित, शर्वनाग, कमला, रामा इत्यादि। दूसरी ओर से वृद्ध पर्णदत्त का हाथ पकड़े हुए देवसेना का प्रवेश)

१–नागरिक--अरे वह छोकरी आ गई, इससे कुछ सुना जाय।

२. नागरिक--हाँ रे छोकरी! कुछ गा तो।

पर्ण०--भीख दो बाबा! देश के बच्चे भूखे है, नंगे है, असहाय है; कुछ दो बाबा!

१--अरे गाने भी दे बूढ़े!

पर्ण०--हाय रे अभागे देश!

(देवसेना गाती है)

देश की दुर्दशा निहारोगे
डूबते को कभी उबारोगे
हारते ही रहे, न है कुछ अब
दाँव पर आपको न हारोगे
कुछ करोगे कि बस सदा रोकर
दीन हो दैव को पुकारोगे
सो रहे तुम, न भाग्य होता है
आप बिगड़ी तुम्हीं सँवारोगे
दीन जीवन बिता रहे अब तक
क्या हुए जा रहे, विचारोगे


पर्ण०--नहीं बेटी, ये निर्लज्ज कभी विचार नहीं करेंगे।

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