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पंचम अंक
 

चक्रपालित और भीमवर्म्मा-- आर्य पर्णदत्त की जय!

पर्ण०-- मुझे जय नहीं चाहिये-भीख चाहिये। जो दे सकता हो अपने प्राण, जो जन्मभूमि के लिये उत्सर्ग कर सकता हो जीवन, वैसे वीर चाहिये; कोई देगा भीख में?

स्कंद०-- (भीड़ में से निकलकर) मैं प्रस्तुत हूँ तात!

भटार्क-- श्री स्कंदगुप्त विक्रमादित्य को जय हो!

(नागरिकों में से बहुत-से युवक निकल पड़ते हैं)

सब-- हम हैं, हम आपकी सेवा के लिये प्रस्तुत हैं।

स्कंद॰-- आर्य्य पर्णदत्त!

पर्ण०-- आओ वत्स! सम्राट्! (आलिङ्गन करता है)

[उत्साह से जनता पूजा के फूल बरसाती है। चक्रपालित, भीमवर्म्मा, मातृगुप्त, शर्वनाग, कमला, रामा, सबका प्रकट होना---जयनाद!]

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