जातियों का उत्थान-पतन आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा सम्पन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न
हमारे सञ्चय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य्य-संतान
जियें तो सदा उसी के लिये, यही अभिमान रहे, यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष
सब-- (समवेत स्वर से) जय! राजाधिराज स्कन्दगुप्त की जय!!
(हूण-सेना के साथ खिङ्गिल का आगमन)
खिङ्गिल-- बच गया था भाग्य से, फिर सिंह के मुख में आना चाहता है। भीषण परशु के प्रहारों से तुम्हें अपनी भूल स्मरण हो जायगी।
स्कन्द०-- यह बात करने का स्थल नहीं। (घोर युद्ध, खिङ्गिल घायल होकर बंदी होता है। सम्राट् को बचाने में वृद्ध पर्णदत्त की मृत्यु; गरुड़ध्वज की छाया में वह लिटाया जाता है।)
स्कन्द०-- धन्य वीर आर्य्य पर्णदत्त!
सब-- आर्य्य पर्णदत्त की जय! आर्य्य-साम्राज्य की जय!!
(बन्दी-वेश में पुरगुप्त और अनन्तदेवी के साथ धातुसेन का प्रवेश)
स्कंद-- मेरी सौतेली माता! इस विजय से आप सुखी होंगी।
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