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स्कंदगुप्त
 

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स्कंदगुप्त उपाधि होती है उसके पहले उस नाम का कोई व्यक्ति भी होता है। चंद्रगुप्त का राज्यकाल ३८५-४१३ ई० तक माना जाता है । तब यह भी मानना पड़ेगा कि ३८० के पहले कोई विक्रमादित्य हो गया है, जिसका अनुकरण करने पर उक्त गुप्तवंशी सम्राट् चंद्रगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि से अपने को विभूपित किया । तख्तेवाही के शिलालेख का, जो गोंडोफोरस का है, काल १०३ है । तत्कालीन ईसाई कथाओं के आधार पर जो समय उसका निर्धारित होता है उससे वह विक्रमी संवत् हो ठहरता है । तब यह भी स्थिर हो जाता है कि उस प्राचीन काल में शकसंवत् के अतिरिक्त एक संवत् का प्रचार था और वह विक्रमी था। मालने लोग उसके व्यवहार में * मालव' शब्द का प्रयोग करते थे । | चन्द्रगुप्त का शक-विजय . कहा जाता है, गुप्तवंशी सम्राट् चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने मालव और सौराष्ट्र के पश्चिमी क्षत्रपों को पराजित किया, जो शक थे; इस --लिये यही चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य था । सौराष्ट्र में रुद्रसिंह तृतीय के बाद किसीके सिक्के नहीं मिलते है इसलिये यह माना जाता है। कि इसी चन्द्रगुप्त ने रुद्रसिंह को पराजित करके शकों को निर्मूल किया । पर, बात कुछ दूसरी है। चन्द्रगुप्त के पिता समुद्रगुप्त ने ही भारत की विजय-यात्रा की थी । हरिपेण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि आर्यावर्त के विजित राजाओ में एक नाम रुद्रदेव भी है। संभवतः यहो रुद्रदेव स्वामी रुद्रसेन था, जो सौराष्ट्र का शक क्षत्रप था। तब यह विजय समुद्रगुप्त को थी, फिर चन्द्रगुप्त ने किन शकों को निर्मल किया ? चन्द्रगुप्त का शिलालेख बेतवा और