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प्रथम अंक
 


चेतन से, और बाह्य जगत् का अन्तर्जगत् से सम्बन्ध कौन कराती है? कविता ही न!

मुद्गल--परन्तु हाथ का मुख से, पेट का अन्न से, और आँखों का निद्रा से भी सम्बन्ध होता है कि नहीं? इसको भी कभी सोचा-विचारा है?

मातृगुप्त--संसार में क्या इतनी ही वस्तुएँ विचारने की है? पशु भी इनकी चिन्ता कर लेते होंगे।

मुद्गल--और मनुष्य पशु नहीं है; क्योंकि उसे बातें बनाना आता है--अपनी मूर्खता को छिपाना, पापों पर बुद्धिमानी का आवरण चढ़ाना आता है! और वाग्जाल की फाँस उसके पास है। अपनी घोर आवश्यकताओं में कृत्रिमता बढ़ाकर, सभ्य और पशु से कुछ ऊँचा द्विपद् मनुष्य, पशु बनने से बच जाता है।

मातृगुप्त--होगा, तुम्हारा तात्पर्य्य क्या है?

मुद्गल--विचार-पूर्ण स्वप्न-मय जीवन छोड़कर वास्तविक स्थिति में आओ। ब्राह्मण-कुमार हो, इसीलिये दया आती है।

मातृगुप्त--क्या करूँ?

मुद्गल--मैं दो-चार दिन मे अवंती जानेवाला हूँ; युवराज भट्टारक के पास तुम्हें रखवा दूँगा। अच्छी वृत्ति मिलने लग जायगी। है स्वीकार?

मातृगुप्त--पर तुम्हे मेरे ऊपर इतनी दया क्यों?

मुद्गल--तुम्हारी बुद्धिमत्ता देखकर मैं प्रसन्न हुआ हूँ। उसी दिन से मैं खोजता था। तुम जानते हो कि राजकृपा का

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