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विक्रमादित्य
 

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विक्रमादित्य । विश्ववम्म मौलव के स्वतंत्र नरेश थे । कुमारगुप्त के समय में बंधुवर्मा ने संभवतः ४२४-४३७ ई० के बीच में गुप्त-साम्राज्य के अधीन होना स्वीकार किया। | चन्द्रगुप्त के शक-विजय का उल्लेख वाणभट्ट ने भी किया है-* अरिपुरे परकलत्रकामुकं कामिनीवेशश्चंद्रगुप्तः शकनरपतिं अशातयत्। यह शक-विजय किस प्रांत में हुआ, इसका ठीक उल्लेख नहीं ; पर कुछ लोग अनुमान करते हैं कि कुशीनों के दक्षिणी शक-क्षत्रप से ४०० ई० के समीप प्रतिष्ठान का उद्धार चन्द्रगुप्त ने किया । जब आंध्र-राजाओं से लड़-झगड़ कर वे शक-क्षत्रप स्वतंत्र हो गये थे और चन्द्रगुप्त ने दक्षिण के उन स्वतंत्र शकों को पराजित करने के लिये जिस उपाय को अवलंबन किया था, उसका उल्लेख कथा-सरित्सागर' की चौथो तरंग से भी प्रकट है। मथुरा के शक-शासकां का नाश, जो शके की पहली शाखा के थे, किसने किया---इस संबंध में इतिहास चुप है। * राजुबुल षोडश' और ' खरओष्ठ' नाम के तीन शक-नरेश के, ई० के पूर्व पहली शताब्दी मे, मथुरा पर शासन करने का उल्लेख स्पष्ट मिलती है। घोड़ाश ने आय्य-शासक रामदत्त से दिल्ली और मथुरा छीनकर शक-राज्य प्रतिष्ठित किया था । * राजावली' में इसका उल्लेख है कि विक्रमादित्य ने पहाड़ी राजा शुकवंत से दिल्ली का उद्धार किया । शुकवंत संभवतः विदेशी षोडश का ही विकृत नाम है, क्योकि ईसा की पहली शताब्दी के बाद उस प्रांत मे उन शकों का शासन निर्मूल हो गया। इन लोगों

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