पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२२६

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विक्रमादित्य
 

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विक्रमादित्य । इसमें नीचे रेखा किये हुए दोनों शब्दों पर ध्यान देने से दो बातें निकली हैं। पहली यह कि जिस विक्रमादित्य का उल्लेख शाकुंतल में है, उसका नाम विक्रमादित्य है और साहसांक उसकी उपाधि है। दूसरे भरत-वाक्य में 'गण'-शब्द के द्वारा ईन्द्र और विक्रमादित्य के लिये यज्ञ और गण-राष्ट्र-दोनों की ओर कवि का संकेत है । इसमें राजा या सम्राट-जैसा कोई संबोधन विक्रमादित्य के लिये नही है । तब यह विचार पुष्ट होता है कि विक्रमादित्य मालव-गण-राष्ट्र को प्रमुख नायक था, न कि कोई सम्राट् या राजा । कुछ लोग जैत्रपाल को विक्रमादित्य का पुत्र बताते हैं । हो सकता है कि इसी के एकाधिपत्य से मालवगण में फूट पड़ी हो और शालिवाहन के द्वितीय शक-आक्रमण में वे पराजित किये गये हों। | चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य मालव का अधिपति नहीं था ; वह पाटलिपुत्र का विक्रमादित्य था। उसने स्री-वेश धारण करके किसी शकन्नरपति को मार डाला था। पर पश्चिमी मालव और सौराष्ट्र उसके समय में भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते थे, क्योंकि नरवर्मा और विश्वकर्मा का मालच में और स्वामी रुद्रसिंह आदि तीन स्वतंत्र नरपति सौराष्ट्र के शकों का नाम मिलता है। इसके लेख आकर उदयगिरि और गोपाद्रि तक ही मिलते हैं। जैसा विक्रमादित्य का चरित है; उसके विरुद्ध इसके संबंध में कुछ गाथाएँ मिलती हैं। अपने पिता समुद्रगुप्त की विजयो के आधार पर और किसी शक-नरपति को मारकर, इसने भी पहली बार विक्रमादित्य की उपाधि धारण कर ली थी । यह असली विक्रमदित्य के बराबर अपने को समझती थी।

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