पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२२८

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विक्रमादित्य
 

विक्रमादित्य समय में मतभेद् रखते हैं। हानेली उसे ५४४ में और स्मिथ ५२८ ई० में सानते है । कहरूर का रणच्तेत्र कई युद्धो की रंग- स्थली है, जैसा कि पिछले काल में पानीपत । शक और हूणों के आक्रमण-काल से प्रथम विक्रसादित्य, स्कंद्गुप्त और यशोधम्र्थ से यहीं विजय प्राप्त की । श्रलबेरूनी ने पिछले ही युद्ध का विवरण सुतकर अपन्ते को भ्रम से डाल दिया । जिन लोगो ने यशोधश्र्म- विक्रमादित्य * सिद्ध करने की चेष्टा की है, बे * राज- तरंगिणी' का नीचे लिखा हुय्रा अवतरण प्रमाण में देते हैं-X उज्जयिन्यां श्रीमान् हषोपराभिध', एकच्छत्र- श्वचक्रवर्ती विक्रमादित्य इत्यभूत । " इस श्गोक के श्रीभान हर्ष' पर भार डालकर असंभावित अर्थं किया जाता है ; पर हघे- विक्रसादित्य से यशशेधन्समें का क्या संबंध है, यह स्पष्ट नहीं होता । इसी हर्ष-विक्रमादित्य के लिये कहा जाता है कि उसने भातूगुप्त को काश्मीर का राज्य दिया, परंतु इतिहास में पॉँचवी और छठी शताव्दी में किसी हषे नासक राजा के उज्जयिनी पर शासन् करने का उल्लेख नहीं मिलता ! बहुत दिनो के बाद इसवी सन ९७० के समीप मालव में श्री हपें्व परमार का राज्य करना मिलता है । * राज-तरकिणी * के अनुसार उक्त हुरष्ष-विक्रमादित्य का काल बही है, जब काश्मोर से गान्धार-वंश का युवराज था । तोरमान के शिलालेखों से यह हसिद्ध हो जाता है कि उसके पिता तु ख्ोन चा प्रबरसेन घका समकालीन र्कंद्गुप्त मालव का शासक हो सकता है । तब क्या अ्श्चयें है कि लेखक देव को X तोरमाच हो, और हो ; क्योकि इसी के प्रमाद् से 'राजतरंगिणे * में हर्ष का उल्लेख हो इाया श्रीमान् स्कंदापराभिध: CC शुद्ध पाठ

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