पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
विक्रमादित्य
 

विक्रमादित्य हर्षापराभिध: संगति भी लख जाती है। श्रोसान स्कंदापराभिध: " को के शुद्ध पाठ से 4० इनतीसरे विक्रमाद्त्य स्कंद्गुष्त के सम्बन्ध में *कथा-सरित्- सागर * का विषमशील लम्बक सचिंस्तर वरणत्त करता है! उज्ज- पयिनी-ताथ ( महेन्द्रादित्य ) का पुत्र यह विक्रमादि्त्य म्लेच्छाक्रांते ल् ूलोके उत्पन्न हुञ्रा और इसने- मध्यदेशः स सौराष्ट्र स बङ्गाक्ग च प्र्व दिक " सकश्मीरास्झ कौवेरी काष्टश्च करदीकृता स्लेच्छसंघाश्च निहताः शेषाश्च स्थापिता वरशे इतिहास में सम्राद् कुमारगुप्त की उपाधि सहेन्द्राद्त्य श्रसिद्ध है! इसके चाँदी के सिक्क्कों पर * परस भागवत सहाराजा- विराज श्री कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य: इसी के समय में मालव के स्वतंत्र तरेश विश्ववम्म्मी के पुत्र खंधवस्मो ने अरीनता स्वीकार की । विक्रमाब्द ४८० तक, Gangdhar के शिलालेख द्वारा, मालव का स्व्रतंत्र रहना प्रमाणित है; परंसु ५२९ विक्रमाव्द् वाले मंदसोर के शिलालेख में ४९३ घवि० में कुमारणुप्त की सावेभौस सत्ता मान ली गई । इससे प्रतीत होता है कि इसी काल में मालव शुप्त साम्राज्य में सस्मिलित .. हुआ । चंद्रगुप्त ह्वितीय के संझय में तरवस्मा और विश्वचस्मी मालव के स्वतंत्र नरेश थे । कुछालोगों का अरुभान है कि समेद् के सिकटवर्ती पुष्यसित्रों ने जब गुप्त-साम्राज्य से थुद्ध प्रारंभ किया था, तभी कुसार स्कंद्गुप्त के नेतृत्व में गुप्त-साम्राज्य की सेना ने उज्चयिली पर श्रधिकार किया ! इन्हीं स्कंद्गुप्त का सिक्कों से ३ " स्पष्ट लिखा सिलता है।

१९