पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२३२

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विक्रमादित्य
 

विक्रमादित्य विक्रमादित्य *-उपाधि के लिये शकों का नाश आवश्यक काय्यें था । पिछले काल में इसीलिये विक्रमादि्त्य का एक पथ्योय * शकारि * भी प्रचलित था, और स्कंद्णुप्त के समय में सौराष्टर के शकों का विनाश होना चक्रपालित के शिलालेख से करना एक 1 परन्तु यशोधम्सें के समय में शकों का राज्य कहीं स्पष्ट है। न था, यही बात राजतरंगिणी * के * शकान्व्रिनाश्य येना दौ कार्र्य- भारो लघूछतः जयस्तंभ मे यशोधस्में का शकों के विजय करने का उल्लेख नहीं है, हूणों के विजय का है । मंदसेार के यशोधर्मे के विजय- स्तम्भ का भी वही ससय है जो वराहदास या विष्णुवद्धेंन के शिलालेख का है प्रशस्तियाँ हैं, उसका समय ५२२ ई० का है । सिहिरकुल ही भारी विदेशो शत्र था, यह बात उक्त जयस्तंभ से प्रतीतत होती है । मिहिरकुल ५२२ के पहले पराजित हो चुका था, तब वह कौन युद्ध ५४४ में हुआा, यह नहीं कहा जाता, जिसके द्वारा यशोधम्मं के ' विक्रम ' होने की घोषणा की जाती है । इसीसे हार्नली के विरुद्ध स्सिथ ने यशोधम्में द्वारा मिहिरकुल के पराजित होने का काल ५२८ ई० भासा है, परतु वह इस युद्ध को कह- रूर-युद्ध * कहकर सम्बोधन नहीं करते । कहरूर-युद्ध ५४४ में नहीं हुआ, जैसा कि फरुसन, कीलहाने, हानलो अादि का मत है-प्रत्युत पहले, बहुत पहले, ४५७ ई० के समीप, दूसरी वार हो चुका है। संभवत: लौराष्ट्र के शक रुद्रसिंह और गांधार के हूण तुखीन की सस्मिलित वाहिसी को कहरूर-युद्ध में पराजित कर स्कद्णुप्त ने ्योंवक्ते की रक्षा की थी । श्च्छा, जब ५२८ में से भी ध्वनित होती है । संदसोरवाले । गोविद की उत्कीण की हुई दोत्तों ५ २१

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