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स्कंदगुप्त
 

स्कंदगाुप्त मिहिरकुल पर विजय निश्चित-सी है, तब्र कहरूर-युद्ध के ऊपर बिक्रमादित्य को यशोधम्म्म मानलेवाला सि द्धांत निर्मल हो जाता है; क्योंकि ५३२ के विजयस्तन्भ तथा शिलालेख में सालवणण- स्थिति का उस्लेख है---विक्रम-संवत् का नहीं, अर ५३२ के पहले ही यशोधस्में हूण-विजय करके सम्राट प्रादि पद्बी धारण कर चुका था । फिर ५४४ के काल्पतिक युद्ध की अ्ावश्यकता नहीं है ! राजतरंगिणी' और सुंगयुन के वण्णन से मिलाने पर प्रतीत होता है कि हूरणों का प्रधान केन्द्र गांधार था । चहीं से हूण- राजकुमार अपनी विजयिनी सेना लेकर भिन्न प्रदेशों में राज्य- स्थापन करने रये । 'राजतरंगिणी' का ऋ्स देखते से तीन राजाधों का नास अ्रता है-मेघवाहन, तुश्जीन औ्र तोरसाण । गोंधार के सेघवाहत के समय सें काश्मीर उसके शासत सें हो गया था । उसके पुत्र तुशजोन ने काश्मीर की सूबेदारी की थी । यही तुशल्ीन प्रबरलेन के नास से प्रसिद्ध हुआ, जिसने भेलम पर पुल बैधवाया। सेतुचंध ' नामक प्राकृत कान्य इसीके नास से अङ्कित है । गांधार-वंशीय हूण तुजजीन का समय और स्कंदगुप्त का सभय एक है, ्योंकि उसके पुत्र तोरमाण का काल ५०० इ० स्मिथ ने सिदध किया है। संभवत: स्कंद्गुप्त के द्वारा हूणों से काश्मीर- राज्य किकल जाने पर भातृगुप्त वहाँ का शासक था 1 यह उल्जयिनी-नाथ कुमारणुप्त सहेंद्रादित्य का पुत्र स्कंद्गुप्त विक्क्रमा- दित्य ही था, जिसने सौराष्ट्र शादि से शकों का और काश्मीर तथा सीमा-प्रांत से हूणों का राज्यधर्ंस किया और सनातन आय्य-धर्भे की रक्षा की-न्लेच्छों से श्राक्रांत भारत का उद्धार् किया । भितरी * के स्तम्भ में अंकित- ८ द जयति भुजबलाङ्यो १६ क्ययतकर

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