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विक्रमादित्य
शुप्तवंशैकबोर: प्रथितविपुलधासा नामतः स्कंद्णुप्त: । विनयबल-
सुनीतै वित्रमेण क्रमेण
विक्रसादित्य ही द्वितीय
भविक्रम * है।
पिछले काल के स्वरण-सिकों को देखकर लोग अनुमान्
करते हैं कि उसोके समय से हूणों ने फिर आ्राक्रसण किया थऔरं
स्कंद्गुप् प्राजित हुए। वास्तव सें ऐसी बात तहीं ! तोरमाण के:
शिलालेखों के संबत् को देखने से यह विद्त होता है किं
स्कंद्गुप्त पहले ही निधन को प्राप्त हुए, और दुबेल पुरणुत्त
हाथों में पड़कर तोरमाण के द्वारा गुप्त-साम्राज्य विध्वंस किया
अया और गोपाद्रि तक उसके हाथ में चले गये ।
से स्पष्ट प्रतीत होता है कि स्कंद्णुप्त
कहरूर-युद्ध का विजेता तृतीय
में
H * है १
के
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