पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२३४

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विक्रमादित्य
 


शुप्तवंशैकबोर: प्रथितविपुलधासा नामतः स्कंद्णुप्त: । विनयबल- सुनीतै वित्रमेण क्रमेण विक्रसादित्य ही द्वितीय भविक्रम * है। पिछले काल के स्वरण-सिकों को देखकर लोग अनुमान् करते हैं कि उसोके समय से हूणों ने फिर आ्राक्रसण किया थऔरं स्कंद्गुप् प्राजित हुए। वास्तव सें ऐसी बात तहीं ! तोरमाण के: शिलालेखों के संबत् को देखने से यह विद्त होता है किं स्कंद्गुप्त पहले ही निधन को प्राप्त हुए, और दुबेल पुरणुत्त हाथों में पड़कर तोरमाण के द्वारा गुप्त-साम्राज्य विध्वंस किया अया और गोपाद्रि तक उसके हाथ में चले गये । से स्पष्ट प्रतीत होता है कि स्कंद्णुप्त कहरूर-युद्ध का विजेता तृतीय में H * है १ के

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