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स्कंदगुप्त
 

स्कंद्गुप्त मानते है, नाटकों का नाम नहीं लिया है। इस लिये यह दूसरे कालिदास---नूपसखा कालिदास या दीपशिखा कालिदास कहिये- पॉचवीं और छठी शताब्दी के कालिदास हैं। श्रस्ति कश्चिद्वाग् विशेष: * वाली किंचद्न्ती भी यही सिद्ध करती है कि काव्यकार कालिदास नाटककार से भिन्न हुए । * कालिदास * उतकी उपाधि थी, परन्तु वास्तचिक नास व्या था ? राजतरंगिखी ' में एक * विक्रसादित्य * का वर्णन है, जिसने प्रसन्न होकर काश्मीर देश का राज्य सातृगुप्त * सास के एक कवि को दे कि्या था । डाक्टर भाऊदाजी का सत है कि यह मालू- गुप्त ही कालिदास है। सेरा अनुमान है कि यह मालुगुप्त कालि- दास तो थे, परन्तु द्वितीय औार काव्यकत्तों कालिदास थे । प्रचर- सेन, मातृगुप्त और वित्रमाद्त्यि-ये परस्पर समकालीन व्यक्ति छठी शता्दी के साले जाते है। सहाराष्ट्री भाषा का काव्य 'सेतुबंध' ( दृह सुह बह ) प्रवरसेन के लिये कालिदास ने बनाया था ! ऊपर हस कह अआाये हैं कि साच्युप्त का वही समय है जो काश्मीर में प्रवरसेन का है, इसका नास * तुजीन ' भी था । सम्भवतः इसी सभा में रहकर कालिदास ने अपती जन्मभूमि काश्मीर में यह अपनी पहिली कृति बनाईं; क्योकि उस समय प्राकृत का प्रचार काश्मीर से अधिक था और यह वही प्राकृत है, जो उस समय ससस्त भारतवर्षे से राष्ट्रभाषा के रूप सें व्यवह्वत थी ; इसलिये इसका तास महाराष्ट्री था ! कुछ लोगों का विचार है कि यह काव्य कालिदास का नहीं

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