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स्कंदगुप्त
 

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स्कंदगुप्त कोई प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिल जाय, परन्तु हमें उसके लिये कोई अाग्रह नहीं। इसलिये हमने नाटक में मातृF का ही प्रयोग किया है । मातृगुप्त का कश्मीर को शासन और तोरमाण का ससय ते निश्चित-सा है । विक्रमादित्य के मरने पर उसका काश्मीर-राज्य छोड़ देता है, और वही समय सिहल के कुमार धातुसेन का निर्धारित होता है । इसलिये इस नाटक में धातुसेन भी एक पात्र हैं । बंधुवर्मा, चक्रपालित, पर्णदत, शर्वनाग, भटार्क, पृथ्वीसेन, खिगिल, प्रख्यातकीर्ति, भीमवर्मा (इसका शिलालेख कोशाम्बी में मिला है), गोविन्दगुप्त, अादि सब ऐतिहासिक व्यक्ति हैं । इसमें प्रपंचबुद्धि और मुद्गल कल्पित पात्र है। स्त्रीपात्रों में स्कंद की जननी का नाम मैने देवकी रखा है; स्कंदगुप्त के एक शिलालेख मेहतरपुरिव कृष्णो देवकीसभ्युपेतः मिलता है। सम्भव है कि स्कंद की माता के नाम देवकी ही से कवि को यह उपमा सूझो हो । अनन्तदेवी का ते स्पष्ट उल्लेख पुरगुप्त की माता के रूप में मिलता है । यही पुरगुप्त स्कंदगुप्त के बाद शासक हुआ है। देवसेना और जयमाला वास्तविक और काल्पनिक पात्र, दोनो हो सकते हैं । विजया, कमला, रामा और मालिनी-जैसी किसी दूसरी नामधारिणी स्त्री की भी उस काल मे सम्भावना है। तब भी ये कल्पित है । पात्रो की ऐतिहासिकता के विरुद्ध चरित्र की सृष्टि, जहाँ तक संभव हो सका है, न होने दी गई है। फिर भी कल्पना का अवलम्व लेना ही पड़ा है, केवल घटना की परम्परा ठीक करने, के लिये । . - प्रसाद

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