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स्कंदगुप्त
 


धातुसेन-पहेली! यह भी रहस्य ही है। पुरुष है-कुतूहल और प्रश्न, और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। पुरुष के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिये वह प्रस्तुत है। उसके कुतूहल-उसके अभावों को परिपूर्ण करने का उष्ण प्रयत्न और शीतल उपचार! अभागा मनुष्य संतुष्ट है - बच्चों के समान। पुरुष ने कहा-'क', स्त्री ने अर्थ लगा दिया-'कौवा'; बस, वह रटने लगा। विषय-विह्वल वृद्ध सम्राट, तरुणी की आकांक्षाओं के साधन बन रहे हैं। काले मेघ क्षितिज में एकत्र हैं, शीघ्र ही अन्धकार होगा। परंतु आशा का केन्द्र ध्रुवतारा एक युवराज 'स्कंद' है। निर्मम शून्य आकाश में शीघ्र ही अनेक वर्ण के मेघ रंग भरेंगे। एक विकट अभिनय का आरम्भ होनेवाला है। तुम भी संभवतः उसके अभिनेताओं में से एक होगे। सावधान! सिंहल तुम्हारे लिये प्रस्तुत हैं। (प्रस्थान)

मातृगुप्त-विचक्षण उदार राजकुमार!


[प्रस्थान]

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