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प्रथम अंक
 

भटार्क--क्रान्ति के सहसा इतना समीप उपस्थित होने के तो कोई लक्षण मुझे नहीं दिखाई पड़ते।

अनन्त॰--राजधानी में आनन्द-विलास हो रहा है, और पारसीक मदिरा की धारा बह रही है; इनके स्थान पर रक्त की धारा बहेगी! आज तुम कालागुरु के गंध-धूम से सन्तुष्ट हो रहे हो, कल इन उच्च सौध-मन्दिरों में महापिशाची की विप्लव-ज्वाला धधकेगी! उस चिरायँध की उत्कट गंध असह्य होगी। तब तुम भटार्क! उस आगामी खंड-प्रलय के लिये प्रस्तुत हो कि नही? (ऊपर देखती हुई) उहूँ, प्रपंचबुद्धि की कोई बात आज तक मिथ्या नहीं हुई।

भटार्क--कौन प्रपंचबुद्धि?

अनन्त॰--सूचीभेद्य अंधकार में छिपनेवाली रहस्यमयी नियति का--प्रज्वलित कठोर नियति का--नील आवरण उठा कर झाँकनेवाला। उसकी आँखो मे अभिचार का संकेत है; मुस्कराहट में विनाश की सूचना है; आँधियों से खेलता है, बातें करता है--बिजलियो से आलिंगन!

(प्रपंचबुद्धि का सहसा प्रवेश)

प्रपंचबुद्धि--स्मरण है भाद्र की अमावस्या?

(भटार्क और अनन्तदेवी सहमकर हाथ जोड़ते हैं)

अनन्त॰--स्मरण है, भिक्षु-शिरोमणे ! उसे मैं भूल सकती हूँ!

प्रपंच॰--कौन, महाबलाधिकृत! हँ हँ हँ हँ, तुम लोग सद्धर्म के अभिशाप की लीला देखोगे; है आँखों में इतना बल?

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