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स्कंदगुप्त
 


क्यों, समझ लिया था कि इन मुंडित-मस्तक जीर्ण-कलेवर भिक्षु-कंकालों में क्या धरा है। देखो--शव-चिता में नृत्य करती हुई तारा का तांडव नृत्य, शून्य सर्वनाशकारिणी प्रकृति की मुंड-मालाओ की कंदुक-क्रीड़ा! अश्वमेध हो चुके, उनके फलस्वरूप महानरमेध का उपसंहार भी देखो। (देखकर) है तुझमें--तू करेगा? अच्छा महादेवी! अमावस्या के पहले प्रहर में, जब नील गगन से भयानक और उज्ज्वल उल्कापात होगा, महा-शून्य की ओर देखना। जाता हूँ। सावधान!

(प्रस्थान)

भटार्क--महादेवी! यह भूकंप के समान हृदय को हिला देने-वाला कौन व्यक्ति है? ओह, मेरा तो सिर घूम रहा है!

अनन्त॰--यही तो भिक्षु प्रपंचबुद्धि है!

भटार्क--तब मुझे विश्वास हुआ। यह क्रूर-कठोर नर-पिशाच मेरी सहायता करेगा। मैं उस दिन के लिये प्रस्तुत हूँ।

अनन्त॰--तब प्रतिश्रुत होते हो?

भटार्क--दास सदैव अनुचर रहेगा।

अनन्त॰--अच्छा, तुम इसी गुप्त द्वार से जाओ। देखूँ, अभी कादम्ब की मोह-निद्रा से सम्राट जगे कि नहीं!

जया--(प्रवेश करके) परम भट्टारक अंगड़ाइयाँ ले रहे हैं। स्वामिनी, शीघ्र चलिये।

(जया का प्रस्थान)

भटार्क--तो महादेवी, आज्ञा हो।

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