पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
प्रथम अंक
 

अनन्त॰--(देखती हुई) भटार्क! जाने को कहूँ ? इस शत्रुपुरी में मैं असहाय अबला इतना--आह! (आँसू पोछती है)

भटार्क--धैर्य्य रखिये। इस सेवक के बाहुबल पर विश्वास कीजिये।

अनन्त॰--तो भटार्क, जाओ।

(जया का सहसा प्रवेश)

जया--चलिये शीघ्र!

(दोनों जाती हैं)

भटार्क--एक दुर्भेद्य नारी-हृदय में विश्व-प्रहेलिका का रहस्यबीज है। ओह, कितनी साहसशीला स्त्री है! देखूँ, गुप्त-साम्राज्य के भाग्य की कुंजी यह किधर घुमाती है। परन्तु इसकी आँखों में काम-पिपासा के संकेत अभी उबल रहे हैं। अतृप्ति की चंचल प्रवञ्चना कपोलों पर रक्त होकर क्रीड़ा कर रही है। हृदय में श्वासों की गरमी विलास का संदेश वहन कर रही है। परन्तु... अच्छा चलूँ, यह विचार करने का स्थान नहीं है।

( गुप्त द्वार से जाता है )

[ पट-परिवर्तन ]

२७