[अन्तःपुर का द्वार]
शर्वनाग--( टहलता हुआ ) कौन-सी वस्तु देखी ? किस सौंदर्य पर मन रीझा ? कुछ नहीं, सदैव इसी सुन्दरी खङ्ग-लता की प्रभा पर मैं मुग्ध रहा। मैं नहीं जानता कि और भी कुछ सुन्दर है। वह मेरी स्त्री जिसके अभावों का कोष कभी खाली नहीं, जिसकी भर्त्सनाओं का भांडार अक्षय है, उससे मेरी अंतरात्मा काँप उठती है। आज मेरा पहरा है। घर से जान छूटी, परन्तु रात बड़ी भयानक है। चलें अपने स्थान पर बैठूँ ! सुनता हूँ कि परम भट्टारक की अवस्था अत्यन्त शोचनीय है-- जाने भगवान...
( भटार्क का प्रवेश )
भटार्क--कौन?
शर्वनाग--नायक शर्वनाग।
भटार्क--कितने सैनिक हैं?
शर्व॰--पूरा एक गुल्म।
भटार्क--अंतःपुर से कोई आज्ञा मिली है?
शर्व॰--नही।
भटार्क--तुमको मेरे साथ चलना होगा।
शर्व--मैं प्रस्तुत हूँ; कहाँ चलूँ?
भटार्क--महादेवी के द्वार पर।
शर्व॰--वहाँ मेरा क्या कर्त्तव्य होगा?
भटार्क--कोई न तो भीतर जाने पावे और न भीतर से बाहर आने पावे।
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