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प्रथम अंक
 

शर्व॰--जय हो कुमार की! क्या आज्ञा है?

पुरगुप्त--तुम साम्राज्य की शिष्टता सीखो।

शर्व॰--कुमार! दास चिर-अपराधी है। (सिर झुका लेता है)

भटार्क--इन्हें महादेवी के द्वार पर जाने की आज्ञा दीजिये, यह विश्वस्त सैनिक वीर हैं।

पुरगुप्त--जाओ तुम महादेवी के द्वार पर। जैसा महाबलाधिकृत ने कहा है, वैसा करना।

शर्व॰--जैसी आज्ञा। (अपने सैनिकों को साथ लेकर जाता है, दूसरे नायक और सैनिक परिक्रमण करते है।)

भटार्क--कोई भी पूछे तो यह मत कहना कि सम्राट का निधन हो गया है। हाँ, बढ़ी हुई अस्वस्थता का समाचार बतलाना और सावधान, कोई भी--चाहे वह कुमारामात्य ही क्यों न हो--भीतर न आने पावे। तुम यही कहना कि परम भट्टारक अत्यन्त विकल हैं, किसीसे मिलना नहीं चाहते। समझा?

नायक--अच्छा ......

(दोनों जाते हैं, फाटक बन्द होता है)

नायक--(सैनिकों से) आज बड़ी विकट अवस्था है, भाइयो! सावधान!

(कुमारामात्य, पृथ्वीसेन, महादंडनायक और महाप्रतिहार का प्रवेश)

महाप्रतिहार--नायक, द्वार खोलो, हम लोग परम भट्टारक का दर्शन करेंगे।

नायक--प्रभु! किसीको भीतर जाने की आज्ञा नही हैं।

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