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प्रथम अंक
 


(दोनों सम्मिलित स्वर से)

उतारोगे अब कब भू-भार
बार-बार क्यों कह रक्खा था लूँगा मैं अवतार
उमड़ रहा है इस भूतल पर दुख का पारावार
बाड़व लेलिहान जिह्वा का करता है विस्तार
प्रलय-पयोधर बरस रहे है रक्त-अश्रु की धार
मानवता में राक्षसत्व का अब है पूर्ण प्रचार
पड़ा नहीं कानों में अब तक क्या यह हाहाकार
सावधान हो अब तुम जानो मैं तो चुका पुकार
(हूण-सैनिकों का प्रवेश-बन्दियों के साथ।)

हूण--चुप रह, क्या गाता है ?

मुद्गल--है है, भीख माँगता हूँ, गीत गाता हूँ। आप भी कुछ दीजियेगा? ( दीन मुद्रा बनाता है )

हूण--( धक्का देते हुए ) चल, एक ओर खड़ा हो। हाँ जी, इन दुष्टों ने कुछ देना अभी स्वीकार नहीं किया, बड़े कुत्ते हैं!

नागरिक--हम निरीह प्रजा हैं। हम लोगों के पास क्या रह गया जो आप लोगों को दें। सैनिकों ने तो पहले ही लूट लिया है।

हूण-सेनापति--तुम लोग बातें बनाना खूब जानते हो। अपना छिपा हुआ धन देकर प्राण बचाना हो तो शीघ्रता करो, नहीं तो गरम किये हुए लोहे प्रस्तुत है—–कोड़े और तेल में तर कपड़े भी। उस कष्ट का स्मरण करो।

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