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प्रथम अंक
 


जयमाला--युद्ध क्या गान नहीं है? रुद्र का शृंगीनाद, भैरवी का तांडवनृत्य, और शस्त्रों का वाद्य मिलकर भैरव-संगीत की सृष्टि होती है। जीवन के अंतिम दृश्य को जानते हुए, अपनी आँखों से देखना, जीवन-रहस्य के चरस सौन्दर्य्य की नग्न और भयानक वास्तविकता का अनुभव केवल सच्चे वीर-हृदय को होता है। ध्वंसमयी महामाया प्रकृति का वह निरंतर संगीत है। उसे सुनने के लिये हृदय में साहस और बल एकत्र करो। अत्याचार के श्मशान में ही मङ्गल का, शिव का, सत्य सुन्दर संगीत का समारम्भ होता है।

देवसेना--तो भाभी, मैं तो गाती हूँ। एक बार गा लूँ, हमारा प्रिय गान फिर गाने को मिले या नहीं।

जयमाला--तो गाओ न।

विजया--रानी! तुम लोग आग की चिनगारियाँ हो, या स्त्री हो? देवी! ज्वालामुखी की सुन्दर लट के समान तुम लोग ......

जयमाला--सुनो, देवसेना गा रही है--

( गाना )

भरा नैनों में मन में रूप

किसी छलिया का अमल अनूप

जल-थल, मारुत, व्योम में, जो छाया है सब ओर

खोज-खोजकर खो गई मैं, पागल - प्रेम - विभोर

भाँग से भरा हुआ यह कूप

भर नैनों में मन में रूप

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