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प्रथम अंक
 

( रक्त से लथपथ भीम का प्रवेश )

भीम--भाभी! रक्षा न हो सकी, अब तो मैं जाता हूँ| वीरों के वरणीय सम्मान को अवश्य प्राप्त करूँगा। परन्तु...

जयमाला--हम लोगों की चिन्ता न करो। वीर! स्त्रियो की, ब्राह्मणों की, पीड़ितों और अनाथों की रक्षा में प्राण-विसर्जन करना, क्षत्रिय का धर्म है। एक प्रलय की ज्वाला अपनी तलवार से फैला दो। भैरव के श्रृंगीनाद के समान प्रबल हुंकार से शत्रु-हृदय कँपा दो। वीर! बढ़ो, गिरो तो मध्यान्ह के भीषण सूर्य के समान!--आगे, पीछे, सर्वत्र आलोक और उज्ज्वलता रहे!

( भीम का प्रस्थान, द्वार का टूटना, विजयी शत्रु-सेनापति का प्रवेश, भीम का आकर रोकना, गिरते-गिरते भीम का जयमाला और देवसेना की सहायता से युद्ध। सहसा स्कंदगुप्त का सैनिकों के साथ प्रवेश। )

'युवराज स्कंदगुप्त की जय!'

( शक और हुण स्तम्भित होते हैं )

स्कंद०--ठहरो देवियो! स्कंद के जीवित रहते स्त्रियों को| शस्त्र नहीं चलाना पड़ेगा।

( युद्ध; सब पराजित और बंदी होते हैं। )

विजया--( झाँककर ) अहा! कैसी भयानक और सुन्दर मूर्त्ति है!

स्कन्द--( विजया को देखकर ) यह--यह कौन?

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