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स्कंदगुप्त
 


देगा? कभी नहीं। वीरों का भी क्या ही व्यवसाय है, क्या ही उन्मत्त भावना है। चक्रपालित! संसार में जो सबसे महान् है, वह क्या है? त्याग। त्याग का ही दूसरा नाम महत्त्व है। प्राणों का मोह त्याग करना वीरता का रहस्य है।

चक्र०--युवराज! संपूर्ण संसार कर्म्मण्य वीरों की चित्र-शाला है। वीरत्व एक स्वावलम्बी गुण है। प्राणियों का विकास संभवतः इसी विचार के ऊर्जित होने से हुआ है। जीवन मे वही तो विजयी होता है, जो दिन-रात "युद्ध्यस्व विगतज्वरः" का शंखनाद सुना करता है।

स्कंद०--चक्र! ऐसा जीवन तो विडम्बना है, जिसके लिये दिन-रात लड़ना पड़े। आकाश में जब शीतल शुभ्र शरद-शशि का विलास हो, तब भी दाँत-पर-दाँत रखे, मुट्ठियों को बाँधे हुए, लाल आँखो से एक दूसरे को घूरा करे! वसंत के मनोहर प्रभात में, निभृत कगारों में, चुपचाप बहनेवाली सरिताओं का स्रोत गरम रक्त बहाकर लाल कर दिया जाय! नहीं, नहीं चक्र! मेरी समझ में मानव-जीवन का यह उद्देश नहीं है। कोई और भी निगूढ़ रहस्य है, चाहे उसे मैं स्वयं न जान सका हूँ।

चक्र०—सावधान युवराज! प्रत्येक जीवन में कोई बड़ा काम करने के पहले ऐसे ही दुर्बल विचार आते हैं; वह तुच्छ प्राणो का मोह है। अपने को झगड़ों से अलग रखने के लिये, अपनी रक्षा के लिये, यह उसका क्षुद्र प्रयत्न होता है। अयोध्या चलने के लिये आपने कब का समय निश्चित किया है? राज-

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