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द्वितीय अंक
 


व्याकुल हो जाये। और फिर दो बूंद गरम-गरम आँसू, और इसके बाद एक तान वागीश्वरी की--करुण-कोमल तान। बिना इसके सब रंग फीका--

विजया--उस समय भी गान?

देवसेना--बिना गान के कोई कार्य्य नहीं। विश्व के प्रत्येक कम्प में एक ताल है। आहा! तुमने सुना नहीं है दुर्भाग्य तुम्हारा। सुनोगी?

विजया--राजकुमारी! गाने का भी रोग होता है क्या? हाथ को ऊँचे-नीचे हिलाना, मुंह बनाकर एक भाव प्रकट करना, फिर सिर को इस ज़ोर से हिला देना जैसे उस तान से शून्य मे एक हिलोर उठ गई!

देवसेना--विजया! प्रत्येक परमाणु के मिलन में एक सम है, प्रत्येक हरी-हरी पत्ती के हिलने मे एक लय है। मनुष्य ने अपना स्वर विकृत कर रखा है, इसीसे तो उसका स्वर विश्व-वीणा में शीघ्र नहीं मिलता। पांडित्य के मारे जब देखो, जहाँ देखो, बेताल-बेसुरा बोलेगा। पक्षियों को देखो, उनकी 'चहचह' 'कलकल' 'छलछल' मे, काकली में, रागिनी है।

विजया--राजकुमारी, क्या कह रही हो?

देवसेना--तुमने एकांत टीले पर, सबसे अलग, शरद के सुन्दर प्रभात में फूला हुआ, फूलों से लदा हुआ, पारिजात-वृक्ष देखा है?

विजया--नहीं तो। देवसेना—उसका स्वर अन्य वृक्षों से नहीं मिलता। वह

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