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द्वितीय अंक
 


काम भी करें जिससे तुम चौंक उठो। परन्तु नहीं, वह तो तुम्हें करना ही होगा।

भटार्क--क्या?

प्रपंच०--महादेवी देवकी के कारण राजधानी में विद्रोह की संभावना है, उन्हें संसार से हटाना होगा।

शर्व०--ठीक है, तभी आप चौंकते हैं, और तभी धर्म की रक्षा होगी। हत्या के द्वारा हत्या का निषेध कर लेंगे--क्यों?

भटार्क--ठहरो शर्व! परन्तु महास्थविर! क्या इसकी अत्यंत आवश्यकता है?

प्रपंच०--नितांत।

शर्व०--बिना इसके काम ही न चलेगा, धर्म्म ही ना प्रचारित होगा!

प्रपंच--और यह काम शर्व को करना होगा।

शर्व०--(चौंककर) मुझे? मैं कदापि नहीं...

भटार्क--शीघ्रता न करो शर्व! भविष्यत के सुखों से इसकी तुलना करो।

शर्व०--नाप-तौल मैं नहीं जानता, मुझे शत्रु दिखा दो। मैं भूखे भेड़िये की भांति उसका रक्तपान कर लूँगा, चाहे मैं ही क्यों न मारा जाऊँ; परन्तु निरीह हत्या--यह मुझसे नहीं••••••

भटार्क--मेरी आज्ञा।

शर्व--तुम सैनिक हो, उठाओ तलवार। चलो, दो सहस्र शत्रुओं पर हम दो मनुष्य आक्रमण करें। देखें, मरने से कौन

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