[ बंदीगृह में देवकी और रामा ]
रामा--महादेवी! मैं लज्जा के गर्त में डूब रही हूँ। मुझे कृतज्ञता और सेवा-धर्म्म धिक्कार दे रहे हैं। मेरा स्वामी......
देवकी--शांत हो रामा! बुरे दिन कहते किसे हैं? जब स्वजन लोग अपने शील-शिष्टाचार का पालन करें--आत्मसमर्पण, सहानुभूति, सत्पथ का अवलम्बन करें, तो दुर्दिन का साहस नहीं कि उस कुटुम्ब की ओर आँख उठाकर देखे। इसलिये इस कठोर समय में भगवान की स्निग्ध करुणा का शीतल ध्यान कर।
रामा--महादेवी! परन्तु आपकी क्या दशा होगी?
देवकी--मेरी दशा? मेरी लाज का बोझ उसीपर है, जिसने वचन दिया है, जिस विपद्-भंजन की असीम दया अपना स्निग्ध अञ्चल सब दुखियों के आँसू पोंछने के लिये सदैव हाथ में लिए रहती है।
रामा--परन्तु उसने पिशाच का प्रतिनिधित्व ग्रहण किया है, और...
देवकी--न घबरा रामा! एक पिशाच नहीं, नरक के असंख्य दुर्दान्त प्रेत और क्रूर पिशाचों का त्रास और उनकी ज्वाला दयामय की कृपादृष्टि के एक बिन्दु से शान्त होती है।
(नेपथ्य से गाना)
पालना बनें प्रलय की लहरें
शीतल हो ज्वाला की आँधी
करुणा के घन छहरें
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