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द्वितीय अंक
 


जयमाला--( घुटने टेककर ) मालवेश्वर की जय हो! प्रजा ने अपराध किया है, दंड दीजिये। पतिदेव! आपकी दासी क्षमा माँगती है। मेरी आँखें खुल गईं। आज हमने जो राज्य पाया है, वह विश्व-साम्राज्य से भी ऊँचा है-महान् है। मेरे स्वामी और ऐसे महान्! धन्य हूँ मैं••••••

[बंधुवर्मा सिर पर हाथ रखता है]