स्कंदगुप्त---वे कौन-सी हैं?
पर्णदत्त---अपने अधिकारों के प्रति आपकी उदासीनता और अयोध्या में नित्य नये परिवर्तन।
स्कंदगुप्त---क्या अयोध्या का कोई नया समाचार हैं?
पर्णदत्त---संभवतः सम्राट तो कुसुमपुर चले गये हैं, और कुमारामात्य महाबलाधिकृत वीरसेन ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
स्कंदगुप्त---क्या! महाबलाधिकृत अब नही हैं? शोक!
पर्णदत्त---अनेक समरों के विजेता, महामानी, गुप्त-साम्राज्य के महाबलाधिकृत अब इस लोक में नहीं हैं! इधर प्रौढ़ सम्राट के विलास की मात्रा बढ़ गई है!
स्कंदगुप्त---चिंता क्या! आर्य! अभी तो आप हैं, तब भी मैं ही सब विचारों का भार वहन करूँँ, अधिकार का उपयोग करूँ! वह भी किस लिये?
पर्णदत्त---किस लिये? त्रस्त प्रजा की रक्षा के लिये, सतीत्व के सम्मान के लिये, देवता, ब्राह्मण और गौ की मर्य्यादा में विश्वास के लिये, आतंक से प्रकृति को आश्वासन देने के लिये आपको अपने अधिकारों का उपयोग करना होगा। युवराज! इसीलिये मैने कहा था कि आप अपने अधिकारों के प्रति उदासीन हैं जिसकी मुझे बड़ी चिन्ता है। गुप्त-साम्राज्य के भावी शासक को अपने उत्तरदायित्व का ध्यान नहीं!
स्कंदगुप्त---सेनापते! प्रकृतिस्थ होइये! परम भट्टारक महाराजाधिराज अश्वमेध-पराक्रम श्रीकुमारगुप्त महेन्द्रादित्य के सुशासित राज्य की सुपालित प्रजा को डरने का कारण नहीं है।
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