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द्वितीय अंक
 


हत्या के कुचक्र में सम्मिलित हो! यह तुम्हारा अक्षम्य अपराध है। भटार्क०-- मैं केवल राजमाता की आज्ञा का पालन करता था

देवकी-- क्यों भटार्क! तुम यह उत्तर सच्चे हृदय से देते हो? क्या ऐसा कहकर तुम स्वयं अपनेको धोखा देते हुए औरों को भी प्रत नहीं कर रहे हो?

भटार्क-- अपराध हुआ। (सिर नीचा कर लेता है)

स्कन्द०-- तुम्हारे खड्ग पर साम्राज्य को भरोसा था। तुम्हारे हृदय पर तुम्हीं को भरोसा न रहे, यह बड़े धिक्कार की बात है। तुम्हारा इतना पतन? (भटार्क स्तब्ध रहता है। विजया की ओर देखकर) और तुम विजया? तुम क्यों इसमें--

देवसेना-- सम्राट्! विजया मेरी सखी है।

विजया-- परंतु मैंने भटार्क को वरण किया है।

जयमाला-- विजया!

विजया-- कर चुकी देवी!

देवसेना-- उसके लिये दूसरा उपाय न था राजाधिराज! प्रतिहिंसा मनुष्य को इतना नीचे गिरा सकती है! परंतु विजया, तूने शीघ्रता की।

(स्कंद विजया की ओर देखते हुए विचार में पड़ जाता है)

गोविन्द०-- यह वृद्धा इसी कृतघ्न भटार्क की माता है। भटार्क के नीच कर्मों से दुखी होकर यह उज्जयिनी चली आई है।

स्कंद०-- परंतु विजया, तुमने यह क्या किया?

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