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स्कंदगुप्त
देवसेना--( स्वगत ) आह! जिसकी मुझे आशंका थी, वही है। विजया! आज तू हारकर भी जीत गई।
देवकी--वत्स! आज तुम्हारे शुभ महाभिषेक में एक बूंद भी रक्त न गिरे। तुम्हारी माता की भी यह मंगल-कामना है कि तुम्हारा शासन-दंड क्षमा के संकेत पर चला करे। आज मैं सबके लिये क्षमाप्रार्थिनी हूँ।
कुमारदास--आर्यनारी सती! तुम धन्य हो! इसी गौरव से तुम्हारे देश का सिर ऊँचा रहेगा।
स्कंद०--जैसी माता की इच्छा--
मातृगुप्त--परमेश्वर परम भट्टारक महाराजाधिराज स्कंदगुप्त की जय!!
[यवनिका]