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स्कंदगुप्त
 

मातृगुप्त-- (निकलकर) भयानक कुचक्र! एक निर्मल कुसुम-कली को कुचलने के लिये इतनी बड़ी प्रतारणा की चक्की! मनुष्य! तुझे हिंसा का उतना ही लोभ है, जितना एक भूखे भेड़िये को! तब भी तेरे पास उससे कुछ विशेष साधन हैं-- छल, कपट, विश्वासघात, कृतघ्नता, और पैने अस्त्र। इनसे भी चढ़कर प्राण लेने की कलाकुशलता। देखा जायगा; भटार्क! तुम जाते कहाँ हो?

[जाता है]

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