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स्कंदगुप्त
देवसेना-- संसार का मूक शिक्षक 'श्मशान' क्या डरने की वस्तु है? जीवन की नश्वरता के साथ ही सर्वात्मा के उत्थान का ऐसा सुन्दर स्थल और कौन है?
(नेपथ्य से गान)
सब जीवन बीता जाता है।
धूप-छाँह के खेल-सदृश। सब०
समय भागता है प्रतिक्षण में
नव-अतीत के तुषार-कण में
हमें लगाकर भविष्य-रण में
आप कहाँ छिप जाता है?--सब०
बुल्ले, लहर, हवा के झोंके
मेघ और बिजली को टोके
किसका साहस है कुछ रोके
जीवन का वह नाता है।--सब०
वंशी को बस बज जाने दो
मीठी मीड़ों को आने दो
आँख बन्द करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है।--सब॰
विजया-- (स्वगत) भाव-विभोर दूर की रागिनी सुनती हुई यह कुरंगी-सी कुमारी......आह! कैसा भोला मुखड़ा है! नहीं, नहीं विजया! सावधान! प्रतिहिंसा......(प्रकट) राजकुमारी! देखो, यह कोई बड़ा सिद्ध है, वहाँ तक चलोगी?
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