पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/३०२

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बच्चों को पाल-पोष कर बड़ा बना चुकी होती है, और घर को जहाँ तक सुधारना चाहिए वहाँ तक सुधार चुकी होती हैं। जिस काम के लिए उनका निर्माण होता है, वह काम एका-एक बन्द होजाता है––वे बिना काम की, निकम्मी हो जाती हैं। काम करने की ताकत उन में जैसी की तैसी रहती है, पर उसे करने के लिए फिर उन्हें प्रसङ्ग नहीं मिलता। यदि सौभाग्य से उसकी बेटी या बेटे की बच अपने नये घर का काम उसे दे तो उसे अपने समय और शक्ति के उपयोग का अवसर मिल सकता है, उसके दिन सुख में बीत सकते हैं, नहीं तो ऐसी स्थिति में पड़ी हुई स्त्रियों को निकम्मी बन कर अपना ग्लानियुक्त जीवन बिताना पड़ता है[१]। समाज ने जो स्त्रियों का एक हो कर्तव्य निश्चित किया है, उसे पूरी योग्यता और निष्ठा से पूरा करने पर भी वृद्धावस्था में उनके जीवन की यह दुर्दशा होना, क्या उनका कम दुर्भाग्य है? ऐसी स्त्रियाँ, तथा जिन्हें विवाहित स्त्री के कर्तव्य पूरा करने का ज़रा भी अवसर नहीं मिला वे स्त्रियाँ-ऐसी दशा में योग्य व्यवसाय से दूर पड़ी-पड़ी सड़ा करती हैं और बिना काम को निर्जीव जीवनी बिताती हैं। ऐसी स्त्रियों का मुख्य काम देखेंगे तो धर्म और उपकार ही होगा। किन्तु उनको


  1. पाठकों को स्मरण रखना चाहिए कि हमारे देश के समान योरप में अविभक्त कुटुम्ब नहीं होता। वहाँ लड़का और लड़की सयाने होने पर अपने-अपने योग्य पति और पत्नी तलाश कर लेते हैं और फिर उनका घर न्यारा होता है।

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