पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/७८

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को एक कुटुम्बो की तरह माने, और अपन उसके सम्पूर्ण प्रेम के पात्र बन कर रहें, अपनी सेवा का सब से अच्छा बदला यही है, यही सब से बड़ा पारितोषिक है।" यदि प्रत्येक प्लोबीअन युवक के मन में यह लोभ पैदा करा दिया गया होता, और यदि उनमें सब से विशेष बुद्धिमान् और महत्त्वाकांक्षी युवकों को यह विश्वास करा दिया गया होता कि उन्हें यह उत्कृष्ट पदार्थ मिलेगा; तो इसके मिलने पर, वे अपने मालिकों की इच्छा और स्वार्थ के विरुद्ध निस्सन्देह कुछ न करते। वे अपने मालिकों के लाभ को छोड़ कर दूसरी किसी बात को अपने मन में जगह न देते। यदि उनके हृदयों को इस प्रकार अपनी ओर झुका लिया गया होता तो आज स्त्री-पुरुषो में जो स्थूल भेद दिखाई देता है वही पेट्रोशिन और प्लीबीअनों में दीखता। और किसी इक्के-दुक्के विचारशील पुरुष को छोड़ कर बाक़ी सब मनुष्यों को यह बात स्वाभाविक ही मालूम होती, मनुष्य-प्रकृति में स्वभावसिद्ध जान पड़ती, अपरिहार्य मालूम होती- इस में ज़रा भी सन्देह नहीं है।

१२-ऊपर दी हुई निर्दिष्ट विचार-शैली से यह बात तो सब को साफ़ तौर पर मालूम हो गई होगी कि वर्त्तमान रूढ़ि चाहे जैसी सर्वमान्य या सर्वसाधारण हो, किन्तु केवल उसकी सर्वमान्यता से ही सामाजिक और राजकीय विषयों में स्त्रियों को पुरुषों के आधीन रखने की व्यवस्था प्रकृतिसिद्ध या स्वाभा-