निवेदन।
पाठक महाशय, स्वदेश का हिन्दी अनुवाद आपकी सेवा में उपस्थित है। भारतमाता के ख्यातनामा सुपुत्र कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के इस ग्रन्थ के विषय में कुछ कहने का हमें अधिकार नहीं––यह ग्रन्थ ही आपको अपने महत्त्वकी साक्षी देगा। हम केवल इसके अनुवाद के विषय में यह निवेदन कर देना चाहते है कि इसे सब प्रकार से शुद्ध, सरल और भावव्याञ्जक बनवाने के लिए हमने अपनी शक्तिभर प्रयत्न किया है और हमारा विश्वास है कि रवीन्द्रबाबू के गंभीर विचारपूर्ण ग्रन्थों के अनुवाद कराने में जो कठिनाइयाँ हैं उनका सामना करने में हमें जो सफलता प्राप्त हुई हैं उसे आप लोग भी आदर की दृष्टि से देखेंगे।
हम देखना चाहते हैं कि हिन्दी–संसार ऐसे ग्रन्थों का कहा तक आदर करता है। यदि हिन्दीहितैषी सज्जनों ने हमारे उत्साह को बढ़ाया तो हम रवीन्द्रबाबू के अन्याय गंभीर ग्रन्थों के अनुवाद भी शीघ्र तैयार करानेका प्रयत्न करेंगे।