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समाज-भेद।


परोसी, राजा-प्रजा, पुरोहित-यजमान, सब इस धर्म को मानते हैं। बाहर चाहे जितना गदर मचे, राजसिंहासन पर चाहे जो कोई बैठे, कोई हानि नहीं। इस धर्म ने बहुविस्तृत चीन देश के भीतर रहकर अखण्ड-नियम से उस विशाल जन-समाज को सँभाल रक्खा है। उस धर्म पर धक्का पहुँचने से चीन को मृत्यु की ऐसी व्यथा होती है और वह आत्मरक्षा के लिए निठुर हो उठता है। उस समय उसे कौन रोक सकता है? उस समय उसके आगे राजा भी कुछ नहीं और राजा की सेना भी कुछ नहीं है। उस समय चीन-साम्राज्य नहीं, चीना जाति जाग उठती है।

एक छोटे से दृष्टान्त से मेरा मतलब खुलासा हो जायगा। अँगरेज का परिवार किसी व्यक्ति के जीते रहने तक उससे सम्बन्ध रखता है। किन्तु हमारा परिवार कुल का एक अंग है। इतने ही अन्तर से सब अलग हो जाता है। अंगरेज लोग इस अन्तर को समझे बिना हिन्दू-परिवार की व्यथा को खयाल में ही नहीं ला सकते। यही कारण है कि वे हमारी बहुत सी बातों को देख सुनकर उन्हें सह नहीं सकते, हमको नफरत-की निगाह से देखने लगते हैं। ऐसा होता है और हमेशा ही होता रहेगा। हिन्दूपरिवार में कुल-सूत्र से जीवित, मृत और आगे पैदा होनेवाले––जिनका अभी जन्म ही नहीं हुआ––सब परस्पर संयुक्त हैं।इस लिए, हिन्दू-परिवार से अगर कोई कुल-त्याग कर बाहर हो जाय तो इससे परिवार को कैसी कड़ी चोट पहुँचती है––इस बात को अँगरेज लोग नहीं समझ पाते। क्यों कि अँगरेज-परिवार में पति-पत्नी सम्बन्ध के सिवा और कोई दृढ़ बन्धन नहीं है।

इसीसे हिन्दूसमाज में विधवाका विवाह विहित होने पर भी प्रच-

लित नहीं हुआ। क्योंकि जीवित प्राणी जैसे अपने किसी जानदा रअंग को काटकर अलग कर देना नहीं चाहता, वैसे ही हिन्दू-परि