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स्वदेश–

वार भी विधवाको छोड़कर अपनेको घायल करनेके लिए तैयार नहीं है। हिन्दूसमाज बाल्यविवाहको भी इसीसे अच्छा समझता है। वह जानता है कि प्रेम पैदा हानेके लायक अवस्थामें ही स्त्री-पुरुषका यथार्थ मिलन हो सकता है, यह सच है; परन्तु सारे परिवार के साथ मिलन और स्नेह होने का समय बाल्यकाल ही है।

दूसरे पहलू से देखने पर विधवा-विवाह का निषेध और बाल्यविवाह की व्यवस्था भले ही हानिकारक हो, किन्तु जो आदमी हिन्दू-समाज की स्थिति या संगठन को अच्छी तरह समझता है, वह विधवा-विवाह के निषेध और बाल्य-विवाह के विधान को जंगली पन या असभ्यता कहकर नहीं उड़ा दे सकता। भारतवर्ष की रक्षा के लिए, बहुत खर्च पड़ने पर भी,जैसे अँगरेजो को जिब्राल्टर, माल्टा, स्वेज और अदनकी रक्षा करनी पड़ती है, वैसे ही, हानि सहकर भी, परिवार की दृढ़ता और अखण्डता बनाये रखने के लिए, हिन्दुओको भी इन सब नियमो का पालन करना पड़ता है।

इस पर अँगरेज लोग यह तर्क उठा सकते हैं कि इस तरह सुदृढ़- भाव से पारेवार और समाजका संगठन अच्छा है कि नहीं है हम कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वार्थ को सबके ऊपर रखकर पोलिटिकल दृढ़ता साधना अच्छा है या नहीं? यह भी तर्कका विषय है। देशकी ओर सब जरूरतों को दिन दिन दबाकर सेना बढ़ाने में यूरोप पिसा जा रहा है––सेना के बेहद बोझ से उसका नष्ट हो रहा है। इसकी इति कहाँ पर होगी? निहिलिस्टा के आग्नेय उत्पात में (डिनामाईट या बम के गोलो के उपद्रव में) या आपस की प्रलयकारी टक्कर में! यदि यह सत्य हो कि हम स्वार्थ और स्वेन्छाचारको सहस्त्र बन्धना से जकडे पकडे रहनके कारण मर रहे है तो इस की भी अभी परीक्षा सामञ्जस्य