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स्वदेश–

सार्थकता हो जाय। जो शिक्षा और अभ्यास उस प्रवेश के द्वार को बंद कर देता है वह जंगलीपन की सीढ़ी है। उसीसे अन्याय, अविचार और निठुराई की उत्पत्ति होती है। सच्ची या असली सभ्यता का लक्षण क्या है? असली सभ्यता वही है जो सर्वज्ञ और सब में प्रवेश करनेवाली है। जो पश्चिमी सभ्यता को सदा हँसा करती और धिक्कारें देती है वह 'हिन्दुआनी' है, हिन्दूसभ्यता नहीं है। वैसे ही जो पूर्वी सभ्यता को कुछ भी नहीं मानती वह 'साहबियाना' है, यूरोप की सभ्यता नहीं है। जो आदर्श दूसरे आदर्श से द्वेषभाव रखता है वह आदर्श ही नहीं है।

आजकल यूरोप में इस अन्धविद्वेष ने सभ्यता की शान्ति को कलुषित कर दिया है। रावण जब स्वार्थ में अन्धा होकर अधर्म में प्रवृत्त हुआ तब लक्ष्मी ने उसे त्याग कर दिया। आधुनिक यूरोप के देष-मण्डप से लक्ष्मी मानों बाहर निकल पड़ी हैं। इसी कारण बोअरों के नगर में अग्नि-वर्षा हो रही है, चीन में पशु भाव ने लज्जा का परदा हटा दिया है और धर्म-प्रचारकों की निष्ठुर बातों से धर्म पीड़ित हो रहा है