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स्वदेश–


शनर लोग नगर-सम्बन्धी कार्यों में स्वाधीनता पाकर उसके संपादन में यथेष्ट योग्यता नहीं दिखा सके, इसी अपराध से अधीर होकर सरकार ने उनकी वह स्वाधीनता छीन ली। संभव है कि इस समय कलकत्ते का नगर-सम्बन्धी कार्य पहले की अपेक्षा अच्छी तरह चलता हो; किन्तु मैं यह नहीं कह सकता कि यों "अच्छी तरह चलना" ही सबसे अच्छा है। मेरी समझमें तो यदि हमारी अपनी शक्ति से अबकी अपेक्षा खराब काम चले, तो भी वही हमारे लिए अच्छा होगा। हम लोग गरीब हैं और बहुत सी बातों में, इसी कारण, असमर्थ या नालायक हैं। हमारे देश के विश्वविद्यालयों का शिक्षा-कार्य्य धनी और ज्ञानी विलायती विश्वविद्यालयो से तुलना करने योग्य नहीं; इस कारण यदि राजा यहाँके शिक्षाविभाग में देसी लोगों के अधिकार घटाकर अपने जोर से केम्ब्रिज और आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की नकली प्रतिमा गढ़कर खड़ी कर दे तो उससे हमारा क्या उपकार होगा? हम लोग यदि गरीबके लायक अपना एक विद्यालय आप स्थापित कर सकें तो वही हमारी सम्पत्ति होगा। जो 'अच्छा' हमारे हाथमें नहीं है उसे अपना समझना ही मनुष्य के लिए भारी आफत है। कुछ दिन हुए, एक बंगाली डिपुटी मजिस्ट्रेट देसी रजवाड़ों के शासन-प्रबन्ध की बड़ी निन्दा कर रहे थे। उस समय मुझे स्पष्ट देख पड़ा कि वह समझते हैं कि ब्रिटिश राज्य-शासनकी सारी सुव्यवस्था मानों सब उन्हीं की की हुई व्यवस्था है। यदि वे यह समझते कि मैं तो एक साधारण बोझा ढोनेवाला कुली हूँ; मैं यन्त्र चलाने वाला नहीं, बल्कि उस यन्त्र-समूह का एक छोटा सा अङ्ग हूँ, तो कभी इस तरह शेखीके साथ देसी रजवाड़ों के प्रबन्ध की निन्दा न कर सकते। इस सत्य को ठीक तरह समझ लेना हमारे लिए कठिन हो गया है कि ब्रिटिश-राज्य में हमको